Tuesday, July 12, 2011

असामान्य ...

वे  सहज हो बतियाते नहीं हैं 
और न ही सहजता से चल पाते हैं
अजीबोगरीब विचार हैं उनके 
सहजता से जैसे रह गए हों अछूते|

ऐसे दिमाग होते हैं खब्ती भी 
करते हैं निर्देशों का  धीमा पालन 
मगर होती हैं इनकी निष्कलंक मुस्कान 
आमंत्रित करती हो जैसे सिर्फ प्यार
और प्यार भरा आलिंगन |

एक निष्कपट  सा बच्चा जैसे 
इनके दिलों में धडकता ....
हमेशा खिलखिलाता  और महकता.. 
अपनी दुनिया में औरों से परे 
होते हैं ये बड़े मेधावी
और अतुल्य कौशल से भरे 

ये सारे गुण दिखते हैं
इनमें सहजता से ..
बिलकुल नहीं दिखते
विकारग्रस्त 
संदेहपूर्ण और असामान्य से ..
 सच्चाई तो यह है कि-
हम रोजाना दिखावा करते  है 
बहुत ही सहज और सामान्य 
चतुर, चालाक अथाह अद्भुत दिखने का 


मगर सब होते है उतने ही 
असहज व असामान्य 
बहुत कुछ परे उस स्थिति से 
जिसे कहा जा सके 
पूर्णतया सहज और सामान्य?
मुझे लगता है के आज २१वी सदी में  वे लोग जो मानसिक या शारीरिक रूप से सामान्य नहीं है वे ज्यादा सामान्य व सहज व्यवहार करते नज़र आते है |  
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Tuesday, July 5, 2011

महज एक खेल


जीवन के हिस्से हैं
हताशा और व्यवधान
जूझते जाना पल पल के
ध्यान विकर्षण और पथ विचलन से
लेकिन मायने रखता है कि कैसे
खेलते हो तुम इस नियति के खेल को
एक बड़ी सी हार्ड डिस्क और
छोटे सीमित से रैम से ...

गेंद भले है तुम्हारे हाथों में
मगर तुम्हारी ज़रा सी चूक और भूलें
ही तो करेगीं इसके रास्ते तय
गेंद घूमेगी तयशुदा या
किसी गलत रास्ते पर
और यह तय होगा
तुम्हारे कमजोर या मजबूत इरादों से ..
..और ऐसे ही यह खेल निर्णायक होगा
और होगी तय ऐसे ही तुम्हारी
हार या जीत ....

राह के खतरे और रुकावटें
राह की कर्कश डरावनी आवाजें
हों निर्दयी कितनी भी...
नहीं डरना नहीं है तुम्हे
बने रहना है सतत निर्भीक ...
क्योंकि मंजर बदलते हैं
हमेशा होती है
हर वक्त के बदलने और
संभलने की हमेशा गुंजाईश

अपनी जड़ता को छोडो
करो अपने लक्ष्य को लक्षित
यह वक्त है आगे बढ़ने
और बस बढ़ते जाने का
भले ही मिल जायं रास्ते में
घात और प्रतिघात
दोस्ती के मुखौटों में
और हो जाय तुम्हारे विवेक की
एक कठिन परीक्षा ....
किन्तु अपनी रक्षा और
आक्रमण की भूमिका
निभानी है अब खुद तुम्हे ही
चक्रव्यूह से निकल भागने
की नहीं कोई राह अब ...

रास्ते तुम्हे अब चुनने हैं नए
या फिर पहले से आजमाए हुए
भविष्य की कोख में क्या छुपा है
कौन जानता है ?
शांत और सयंत हो लक्ष्य - भेदन
ही है बुद्धिमत्ता की राह ...
खुद पर आंच आये बिना और
बिना किसी पर दोषारोपण के ...
वैसे भी जीत हार में कैसी शर्मिन्दगी
जब जीवन है
महज एक खेल

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