जैसे ही आप अपने घर क बहार कदम रखते है, आप बन जाते है एक भीड़ का हिस्सा | जहाँ अनगिनत अनजान लोग एक साथ घूमते है, बसों में , ट्रेन में, रोड पर...... एक दूसरे के जीवन को बिना छुए न जाने रोज़ कितने ही लोगों से आपका आमना सामना होता है |
जाने कितने ही ऐसे अनजाने चेहरों से आप मिलते है.... पर आज कल किसी के पास अपने व अपने जानने वालों के अलावा किसी और के बारे न तो सोचने का समय है और न ही इच्छा |
लेकिन कभी-कभी भीड़ में कुछ ऐसे चेहरों से सामना होता है जिसे भूल पाना आसन नहीं होता |
वो चेहरा, भीड़ में
सुबकता, अकेला एक कोने में |
कुछ तो गलत हुआ था, उसके साथ |
वो आंसू पोंछते, उसके आंसू भरे हाथ |
बहुत अजीब था, वो सब देखना
उससे भी ज्यादा अजीब था,
उसका यूँ इस तरह, इतना अकेला होना |
उस चेहरे ने मुझे सोचने पर मजबूर किया
उसका ऐसा बुरा हाल, आखिर ऐसे कैसे हुआ |
वो इस भीड़ में, यूँ अकेला खड़ा,
जैसे किसी कोने में हो
एक अनचाहा पत्थर पड़ा |
उस चेहरे ने कह डाली,
उसके पूरे जीवन की कहानी |
जैसे हो एक तस्वीर,
अनंत कष्ट और परेशानी |
कौन जाने ??
अभी और क्या-क्या सहना हो,
इन आंसुओं को कब तक ओर बहना हो |
अगले ही पल, में चल पड़ी
अपनी मंजिल की ओर |
वही रोज़ का काम,
रोज़ का शोर |
नियमित कामों की दैनिक खुराक,
मेरी प्रतिष्ठा बनी रहे,
यही कोशिश, यही फ़िराक |
आज भी, जब में नज़र घुमाती हूं
अपने चारों ओर,
ऐसे कितने ही चेहरे पाती हूँ |
अलग कहानी, अलग आधार,
पर वो लगे मुझे, जैसे वो हों सिर्फ