युद्ध हमेशा तबाही लाता है, कभी किसी का युद्ध से भला न हुआ है न होगा |
युद्ध में जिसकी सबसे ज्यादा हानि होती है वह है मासूम आम जनता | जब युद्ध
में बम गिरते है तो इन्सान या जगह देखकर नहीं गिरते वो तो बस गिरते है
जिंदगियां लेने के लिए | युद्ध में आम जनता गेंहू में घुन की तरह पिसती है |
युद्धक विमानों ,टैंकों , बमों और
रॉकेट लांचरों से पल प्रतिपल दगते
गोले बारूद और
सैनिकों के कदमताल से
कांपती धरती,
भले ही ये दृश्य करते हों मनोरंजन
वीडियो खेलों और कार्टूनों में
मगर इनकी वास्तविकता
है कितनी भयावह
बढ़ता कारवाँ,चारो ओर हाहाकार
फिर एक असहज सी शान्ति,
घृणित सन्नाटा ,कहीं कुछ भी
सौम्य और भद्र नहीं .....
उजड़े आशियाँ सिसकती जिंदगियां
बुझे कुचले अरमान
हर तरफ विद्वेष और अमंगल
सत्ता और शक्ति का संतुलन
राजनीतिक मंसूबे और व्यवस्था
के नाम पर करोड़ों जिंदगियों
के दमन और निरंतर विध्वंस की
ऐ सी कमरों में बनती कुटिल नीतियाँ
खींचे जाते खाके बर्बादी और तबाही के
शरणार्थी शिविरों में रहने को अभिशप्त
दुनिया की एक बड़ी आबादी
दहशत भरी जीवनशैली अपनाने को
मजबूर असंख्य लोग
निराहार ,भोजन को तरसती
अस्थायी शिविरों में कैद
अजन्में और दुधमुहें बच्चे
और उनकी माएं
कौन है जिम्मेदार धरती पर
उभरते इस नरक का ,
कोई भी तो जिम्मेदारी नहीं लेता
सभी शान्ति दूत होने का
करते हैं आगाज
निर्दोष नागरिकों के लिए कैदखाना
बनते उनके ही देश
इस त्रासद माहौल में नहीं
कहीं भी कोई राहत
न कोई सकून
असली चेहरे तो अभी भी कहीं
छुपे हैं ओट में, सुदूर नेपथ्य में
बस सामने है इन
गरीब ,क्षुद्र मानवों का करुण क्रंदन
क्योकि वे हैं पिस रहे हैं
गेहूं के घुन के मानिंद