उस माल के बाहर
हर रोज उसने किया इंतज़ार
कोई एक भी मौका पाने का
भाग्य का पिटारा खुल जाने का
और उस माल के भीतर जाने का
और देखने का सपनो का संसार
दर्प के साथ स्वर्ग में विचरण का
एक स्वर्ग जिसके बारे में उसने
केवल पोस्टरों और चित्रों से जाना था
या फिर अपने हमदम दोस्तों से सुना था
दोस्त जो खुद भी तो उतने अमीर नहीं थे..
मगर आडम्बरी और बडबोले थे.....
मगर उससे तो वे बेहतर ही थे..
सोचता रहता था वो ...
उसने भी अपने अरमानों को कहाँ खोया था ...
बाहरी दरवाजों से ही
वह निगाहे गड़ाए रहता
माल के भीतर के चमकते फर्श ,लोगों
और इन्द्रधनुषी बिजली के लट्टुओं पर
ईश्वर को अक्सर कोसता आखिर वह
इतना अनचाहा क्यों है इस दुनिया में
उसका सपना था
माल के अन्दर जाकर
अपनी बहन के लिए थोड़ी खरीददारी करना
उसके लिए बार्बी की एक गुडिया ला देना
जिसे उसकी बहना ने एक दिन बस स्टाप पर
बगल से गुजरती कार में देखा था ..
जब वह गुलदस्ते बेच रही थी...
वे पहले तो कितना जीवन से संतुष्ट थे
न थी उन्हें कोई ख़ास चाह
जब तक कि उन्होंने नहीं देखा था
उस अनचाही चमकीली दुनियाँ को
उन मासूम दिलों को कहाँ था पता था
मायावी दुनियाँ के ललचाते वजूद का
मगर यहाँ सवाल उठता है
अनचाहा कौन है
वह मासूम बचपन जिसका मुस्तकबिल
आखिर क्यों न हो
एक चमकीली दुनियाँ का हकदार
या उनकी साध और इच्छाएं
जो अनगिन और अनन्त हैं ....
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हर रोज उसने किया इंतज़ार
कोई एक भी मौका पाने का
भाग्य का पिटारा खुल जाने का
और उस माल के भीतर जाने का
और देखने का सपनो का संसार
दर्प के साथ स्वर्ग में विचरण का
एक स्वर्ग जिसके बारे में उसने
केवल पोस्टरों और चित्रों से जाना था
या फिर अपने हमदम दोस्तों से सुना था
दोस्त जो खुद भी तो उतने अमीर नहीं थे..
मगर आडम्बरी और बडबोले थे.....
मगर उससे तो वे बेहतर ही थे..
सोचता रहता था वो ...
उसने भी अपने अरमानों को कहाँ खोया था ...
बाहरी दरवाजों से ही
वह निगाहे गड़ाए रहता
माल के भीतर के चमकते फर्श ,लोगों
और इन्द्रधनुषी बिजली के लट्टुओं पर
ईश्वर को अक्सर कोसता आखिर वह
इतना अनचाहा क्यों है इस दुनिया में
उसका सपना था
माल के अन्दर जाकर
अपनी बहन के लिए थोड़ी खरीददारी करना
उसके लिए बार्बी की एक गुडिया ला देना
जिसे उसकी बहना ने एक दिन बस स्टाप पर
बगल से गुजरती कार में देखा था ..
जब वह गुलदस्ते बेच रही थी...
वे पहले तो कितना जीवन से संतुष्ट थे
न थी उन्हें कोई ख़ास चाह
जब तक कि उन्होंने नहीं देखा था
उस अनचाही चमकीली दुनियाँ को
उन मासूम दिलों को कहाँ था पता था
मायावी दुनियाँ के ललचाते वजूद का
मगर यहाँ सवाल उठता है
अनचाहा कौन है
वह मासूम बचपन जिसका मुस्तकबिल
आखिर क्यों न हो
एक चमकीली दुनियाँ का हकदार
या उनकी साध और इच्छाएं
जो अनगिन और अनन्त हैं ....
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अभी तक अंग्रेजी में पढता था। कुछ समझ आता था कुछ नहीं । अच्छा किया जो हिन्दी में लिखा। आप तो मूलत अंग्रेजी में लिखती हैं फिर यह अनुवाद स्वयं किया या किसी से कराया है। अच्छी कविता । सरल शब्दों में गम्भीर बात ।चमकीली दुनिया का तो ये है कि
ReplyDelete""पहले पहल हवस इक-आध दुकां खोलती है -
फिर तो बाजार के बाजार से लग जाते है।""
आपके अंग्रेजी वर्जन पर हिन्दी में टिप्पणी कर रहा था कि नीचे यह हिन्दी वर्जन ब्लॉग का लिंक मिला।
ReplyDeleteमॉल की चमकीली दुनिया अमीरी की मानसिकता का दर्प है।
और यह दर्प जवान रहेगा जब जब अभावग्रस्त उस चमक की चाह रखेगा।
बहुत भावपूर्ण रचना | और सपने देखने का हक सभी को है जब सपने होंगे तभी तो उसे साकार किया जा सकता है बहुत सार्थक रचना |
ReplyDeleteअच्छा लगा देखकर !
ReplyDeleteअच्छा लगा,आत्म-विश्वास तो जगा.
ReplyDeleteis it translated by you yourself???
ReplyDeleteअत्यंत सुन्दर ..
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