Thursday, June 16, 2011

मैं भ्रष्टाचार हूँ


खंडित एकाग्रता
हर आदमी की राह में अब मैं
एक रुकावट और समस्या हूँ ,
मगर तुमने ही तो मुझे समर्थन दिया
अब मेरा है अब तुम पर राज
तुम्हारा मेरा एक साझा
अस्तित्व है ,
तुम्हारे साथ मैं और
अपराजेय बनता गया हूँ
समय के साथ ...

तुम्ही ने तो मुझे पाला पोसा
और बड़ा किया है ...
लेकिन मैं इसका कहाँ अहसानमंद ?
मेरी कूटनीति ,नियम और
नीतियाँ अलग सी हैं ...
तुम्हारे वन्शाणुओं में पैबस्त होकर
मैंने तुम्हारी विरासत को ही कर डाला
संदूषित

दबंग या निर्बल मेरा अस्तित्व
अब सर्वव्यापी हो चला है
अब मेरा खात्मा ?
सवाल ही नहीं है
मैं तो अब और विराट होता जा रहा
मुझसे छुटकारे की अब कोई राह नहीं
क्योकि तुमने ही तो मुझे अंगीकार किया
बढ़ाया फैलाया है ..

तुम्हारी खंडित एकाग्रता
और रुढियों का फायदा
मुझे ही तो मिलना है ..
विकल्पहीन मनुजों तुमाहरी दुनियां से ..
अब मेरे वजूद का मिटना नामुमकिन है !

मैं भ्रष्टाचार हूँ !

Original Version
Divided Attentions..

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38 comments:

  1. भ्रष्टाचार पर लिखी आपकी यह कविता बहुत सामयिक है.
    आपको और आपके उन मित्र को जिन्होंने यह अनुवाद किया है बहुत बहुत बधाई.
    इससे आपकी कविताओं (जो बहुत बेहतरीन हैं) को सभी पाठकों को समझने में और आसानी रहेगी.

    धन्यवाद सहित सादर

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  2. विकल्पहीन मनुजों तुमाहरी दुनियां से ..
    अब मेरे वजूद का मिटना नामुमकिन है
    सामयिक रचना ..
    दिख रहा है इस दम्भ का प्रभाव

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  3. कविता अपने आप में परिपूर्ण है, इसे किसी अनुवाद की छाया से विलग रखें। बहुत ही सुन्दर।

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  4. बहुत सुंदर ...प्रभावित करती रचना...

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  5. मुझे लगता है हिन्दी वर्जन का शीर्षक, मैं भ्रष्टाचार हूँ ही रखें!अंगरेजी का तो ठीक है !
    हाँ प्रवीण जी के विचार से मैं भी सहमत हूँ -आपकी अंगरेजी कवितायें स्वयंपूर्ण हैं उन्हें हिन्दी अनुवाद की दरकार है भी ?
    सोच लीजिये -मगर कुछ पाठक हिन्दी की मनाग भी करते रहे हैं !
    मुझे तो अंगरेजी वाली ही जोरदार लगती है और मैं प्रवाह में बह जाता हूँ !

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  6. बेहतरीन रचना अपने आप में सम्पूर्ण अभियक्ति अनुवाद की बोझिलता नहीं ,सार्थक नूतन भावानुवाद .

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  7. चयनिका ही पर्याप्त है -इसका प्ल्यूरल आवश्यक नहीं है !

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  8. जैसा की मैंने कहा, कई लोगों के अंदर बसी हुई है और अंतरात्मा से जुड़ गयी है | इसी लिए अब भ्रष्टाचार उनका स्वराज है |

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  9. जितनी सुन्दर कविता, उतना ही सुन्दर अनुवाद...
    बधाई.

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  10. वाकई एक अच्छी रचना...भ्रष्टाचार इस देश की अवैध संतान है...जिससे नफरत करने के बावजूद देश उसे नकार नहीं पा रहा है ....

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  11. बेहद संतुलित सोच दर्शाती कविता ....... शुभकामनायें !

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  12. क्या कहूं बहुत सुदर रचना है...

    तुम्ही ने तो मुझे पाला पोसा
    और बड़ा किया है ...
    लेकिन मैं इसका कहाँ अहसानमंद ?
    मेरी कूटनीति ,नियम और
    नीतियाँ अलग सी हैं ...
    तुम्हारे वन्शाणुओं में पैबस्त होकर
    मैंने तुम्हारी विरासत को ही कर डाला
    संदूषित..

    क्योंकि मैं भ्रष्टाचार हूं...

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  13. Oh! lagta hai srishti se hi brashtachaar ka gathbandhan ho gaya hai ...

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  14. Jyoti,

    KASH MAIN HINDI MEIN TYPE KAR SAKTA. ANGREZI KE BAAD YEH PADNE KA AUR HI MAZZAA HAI. BAHUT HI SUNDAR HAI. BAAKI KAVITAON KO BHI BAAD MENI PADUNGA.

    KRIPYA LIKHTI RAHIYE AUR APNA KHYAAL RAKHIYE

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  15. भ्रष्टाचार के मुंह से कहलवाया गया यह स्वकथन ....ऐसा लग रहा है जैसे रक्तबीज नामक राक्षस अट्टहास कर रहा हो।
    प्रशंसनीय रचना।

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  16. very nice .....corruption par prahaar..!

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  17. bahut khoob likha hai aapne.
    corruption is deeply rooted in our society.

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  18. हिंदी और इंग्लिश दोनों में ही असरदार है ये कविता ... अपना प्रभाव छोडती है ...

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  19. हिंदी में भी उतनी ही प्रभावी.वाह.

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  20. बहुत प्रभावपूर्ण रचना..

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  21. अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद.
    वो दिन भी आएगा जब हिंदी में सृजन होगा और अनुवाद होगा अंग्रेजी में.
    शुभकामनायें

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  22. Very impressive lines...Still be positive. Things will change one day.

    The reasons of various problems in India are on my blog. You're cordially invited to keep your views. Thanks.

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  23. सुन्दर और बेहतरीन कविता.
    बहुत ही अच्छा लिखा है भ्रष्टाचार पर.

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  24. अच्छी सार्थक रचना |बधाई
    आशा

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  25. बेहद संतुलित सोच दर्शाती कविता ......

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  26. तुम्हारी खंडित एकाग्रता
    और रुढियों का फायदा
    मुझे ही तो मिलना है ..
    विकल्पहीन मनुजों तुमाहरी दुनियां से ..
    अब मेरे वजूद का मिटना नामुमकिन है !

    Apani jaden tane pattiyan sab sare desh me failata ja raha hoon.
    Mai bhrasthachar hoon. samayik aur sateek.

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  27. अच्छी समसामयिक कविता है. और आपकी हिंदी भी सराहनीय है.

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  28. बहुत सुन्दर, प्रभावपूर्ण और सार्थक रचना! उम्दा प्रस्तुती!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  29. jyoti ji
    aapki rachna to ek dhara-pravaah me baha si le gai
    bahut hi karari chot

    तुम्ही ने तो मुझे पाला पोसा
    और बड़ा किया है ...
    लेकिन मैं इसका कहाँ अहसानमंद ?
    मेरी कूटनीति ,नियम और
    नीतियाँ अलग सी हैं ...
    तुम्हारे वन्शाणुओं में पैबस्त होकर
    मैंने तुम्हारी विरासत को ही कर डाला
    संदूषित..

    क्योंकि मैं भ्रष्टाचार हूं...
    bhrashtachar ka adhbhut vishleshhan kiya hai aapne.
    bahut bahut badhai
    poonam

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  30. Jyoti ji,
    behad khubsurat aur bhawpoorn rachna hi.... ek dam se apne prawah me baha legai.

    apki hindi bhi bahut achchi hai.

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  31. तुम्हारी खंडित एकाग्रता
    और रुढियों का फायदा
    मुझे ही तो मिलना है ..
    विकल्पहीन मनुजों तुमाहरी दुनियां से ..
    अब मेरे वजूद का मिटना नामुमकिन है !

    'नामुमकिन' को 'मुमकिन' कर सकें ऐसा मन्त्र दीजिये न.
    आपके शब्द हृदय को मथ रहें हैं.क्या करें गल्ती की है तो भुगतेंगें भी.

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  32. भ्रष्टाचार पर लिखी आपकी यह कविता बहुत सामयिक है....प्रभावित करती रचना...

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  33. करीब १५ दिनों से अस्वस्थता के कारण ब्लॉगजगत से दूर हूँ
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,

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  34. बेहद सुन्दर रचना....

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