खंडित एकाग्रता
हर आदमी की राह में अब मैं
एक रुकावट और समस्या हूँ ,
मगर तुमने ही तो मुझे समर्थन दिया
अब मेरा है अब तुम पर राज
तुम्हारा मेरा एक साझा
अस्तित्व है ,
तुम्हारे साथ मैं और
अपराजेय बनता गया हूँ
समय के साथ ...
तुम्ही ने तो मुझे पाला पोसा
और बड़ा किया है ...
लेकिन मैं इसका कहाँ अहसानमंद ?
मेरी कूटनीति ,नियम और
नीतियाँ अलग सी हैं ...
तुम्हारे वन्शाणुओं में पैबस्त होकर
मैंने तुम्हारी विरासत को ही कर डाला
संदूषित
दबंग या निर्बल मेरा अस्तित्व
अब सर्वव्यापी हो चला है
अब मेरा खात्मा ?
सवाल ही नहीं है
मैं तो अब और विराट होता जा रहा
मुझसे छुटकारे की अब कोई राह नहीं
क्योकि तुमने ही तो मुझे अंगीकार किया
बढ़ाया फैलाया है ..
तुम्हारी खंडित एकाग्रता
और रुढियों का फायदा
मुझे ही तो मिलना है ..
विकल्पहीन मनुजों तुमाहरी दुनियां से ..
अब मेरे वजूद का मिटना नामुमकिन है !
मैं भ्रष्टाचार हूँ !
Original Version
Divided Attentions..
हर आदमी की राह में अब मैं
एक रुकावट और समस्या हूँ ,
मगर तुमने ही तो मुझे समर्थन दिया
अब मेरा है अब तुम पर राज
तुम्हारा मेरा एक साझा
अस्तित्व है ,
तुम्हारे साथ मैं और
अपराजेय बनता गया हूँ
समय के साथ ...
तुम्ही ने तो मुझे पाला पोसा
और बड़ा किया है ...
लेकिन मैं इसका कहाँ अहसानमंद ?
मेरी कूटनीति ,नियम और
नीतियाँ अलग सी हैं ...
तुम्हारे वन्शाणुओं में पैबस्त होकर
मैंने तुम्हारी विरासत को ही कर डाला
संदूषित
दबंग या निर्बल मेरा अस्तित्व
अब सर्वव्यापी हो चला है
अब मेरा खात्मा ?
सवाल ही नहीं है
मैं तो अब और विराट होता जा रहा
मुझसे छुटकारे की अब कोई राह नहीं
क्योकि तुमने ही तो मुझे अंगीकार किया
बढ़ाया फैलाया है ..
तुम्हारी खंडित एकाग्रता
और रुढियों का फायदा
मुझे ही तो मिलना है ..
विकल्पहीन मनुजों तुमाहरी दुनियां से ..
अब मेरे वजूद का मिटना नामुमकिन है !
मैं भ्रष्टाचार हूँ !
Original Version
Divided Attentions..
भ्रष्टाचार पर लिखी आपकी यह कविता बहुत सामयिक है.
ReplyDeleteआपको और आपके उन मित्र को जिन्होंने यह अनुवाद किया है बहुत बहुत बधाई.
इससे आपकी कविताओं (जो बहुत बेहतरीन हैं) को सभी पाठकों को समझने में और आसानी रहेगी.
धन्यवाद सहित सादर
विकल्पहीन मनुजों तुमाहरी दुनियां से ..
ReplyDeleteअब मेरे वजूद का मिटना नामुमकिन है
सामयिक रचना ..
दिख रहा है इस दम्भ का प्रभाव
कविता अपने आप में परिपूर्ण है, इसे किसी अनुवाद की छाया से विलग रखें। बहुत ही सुन्दर।
ReplyDeleteबहुत सुंदर ...प्रभावित करती रचना...
ReplyDeleteमुझे लगता है हिन्दी वर्जन का शीर्षक, मैं भ्रष्टाचार हूँ ही रखें!अंगरेजी का तो ठीक है !
ReplyDeleteहाँ प्रवीण जी के विचार से मैं भी सहमत हूँ -आपकी अंगरेजी कवितायें स्वयंपूर्ण हैं उन्हें हिन्दी अनुवाद की दरकार है भी ?
सोच लीजिये -मगर कुछ पाठक हिन्दी की मनाग भी करते रहे हैं !
मुझे तो अंगरेजी वाली ही जोरदार लगती है और मैं प्रवाह में बह जाता हूँ !
बेहतरीन रचना अपने आप में सम्पूर्ण अभियक्ति अनुवाद की बोझिलता नहीं ,सार्थक नूतन भावानुवाद .
ReplyDeleteचयनिका ही पर्याप्त है -इसका प्ल्यूरल आवश्यक नहीं है !
ReplyDeleteजैसा की मैंने कहा, कई लोगों के अंदर बसी हुई है और अंतरात्मा से जुड़ गयी है | इसी लिए अब भ्रष्टाचार उनका स्वराज है |
ReplyDeleteजितनी सुन्दर कविता, उतना ही सुन्दर अनुवाद...
ReplyDeleteबधाई.
वाकई एक अच्छी रचना...भ्रष्टाचार इस देश की अवैध संतान है...जिससे नफरत करने के बावजूद देश उसे नकार नहीं पा रहा है ....
ReplyDeleteबेहद संतुलित सोच दर्शाती कविता ....... शुभकामनायें !
ReplyDeleteक्या कहूं बहुत सुदर रचना है...
ReplyDeleteतुम्ही ने तो मुझे पाला पोसा
और बड़ा किया है ...
लेकिन मैं इसका कहाँ अहसानमंद ?
मेरी कूटनीति ,नियम और
नीतियाँ अलग सी हैं ...
तुम्हारे वन्शाणुओं में पैबस्त होकर
मैंने तुम्हारी विरासत को ही कर डाला
संदूषित..
क्योंकि मैं भ्रष्टाचार हूं...
Oh! lagta hai srishti se hi brashtachaar ka gathbandhan ho gaya hai ...
ReplyDeleteJyoti,
ReplyDeleteKASH MAIN HINDI MEIN TYPE KAR SAKTA. ANGREZI KE BAAD YEH PADNE KA AUR HI MAZZAA HAI. BAHUT HI SUNDAR HAI. BAAKI KAVITAON KO BHI BAAD MENI PADUNGA.
KRIPYA LIKHTI RAHIYE AUR APNA KHYAAL RAKHIYE
भ्रष्टाचार के मुंह से कहलवाया गया यह स्वकथन ....ऐसा लग रहा है जैसे रक्तबीज नामक राक्षस अट्टहास कर रहा हो।
ReplyDeleteप्रशंसनीय रचना।
very nice .....corruption par prahaar..!
ReplyDeletehindi me bhi jabardast...
ReplyDeletebadhaai...
bahut khoob likha hai aapne.
ReplyDeletecorruption is deeply rooted in our society.
हिंदी और इंग्लिश दोनों में ही असरदार है ये कविता ... अपना प्रभाव छोडती है ...
ReplyDeleteहिंदी में भी उतनी ही प्रभावी.वाह.
ReplyDeleteबहुत प्रभावपूर्ण रचना..
ReplyDeleteअंग्रेजी से हिंदी अनुवाद.
ReplyDeleteवो दिन भी आएगा जब हिंदी में सृजन होगा और अनुवाद होगा अंग्रेजी में.
शुभकामनायें
Very impressive lines...Still be positive. Things will change one day.
ReplyDeleteThe reasons of various problems in India are on my blog. You're cordially invited to keep your views. Thanks.
सुन्दर और बेहतरीन कविता.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है भ्रष्टाचार पर.
अच्छी सार्थक रचना |बधाई
ReplyDeleteआशा
sachhai prastut karti rachna
ReplyDelete________________________________________
मैं , मेरा बचपन और मेरी माँ || (^_^) ||
बेहद संतुलित सोच दर्शाती कविता ......
ReplyDeleteतुम्हारी खंडित एकाग्रता
ReplyDeleteऔर रुढियों का फायदा
मुझे ही तो मिलना है ..
विकल्पहीन मनुजों तुमाहरी दुनियां से ..
अब मेरे वजूद का मिटना नामुमकिन है !
Apani jaden tane pattiyan sab sare desh me failata ja raha hoon.
Mai bhrasthachar hoon. samayik aur sateek.
अति सुन्दर
ReplyDeleteअच्छी समसामयिक कविता है. और आपकी हिंदी भी सराहनीय है.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, प्रभावपूर्ण और सार्थक रचना! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
jyoti ji
ReplyDeleteaapki rachna to ek dhara-pravaah me baha si le gai
bahut hi karari chot
तुम्ही ने तो मुझे पाला पोसा
और बड़ा किया है ...
लेकिन मैं इसका कहाँ अहसानमंद ?
मेरी कूटनीति ,नियम और
नीतियाँ अलग सी हैं ...
तुम्हारे वन्शाणुओं में पैबस्त होकर
मैंने तुम्हारी विरासत को ही कर डाला
संदूषित..
क्योंकि मैं भ्रष्टाचार हूं...
bhrashtachar ka adhbhut vishleshhan kiya hai aapne.
bahut bahut badhai
poonam
Jyoti ji,
ReplyDeletebehad khubsurat aur bhawpoorn rachna hi.... ek dam se apne prawah me baha legai.
apki hindi bhi bahut achchi hai.
very nice jyoti
ReplyDeleteतुम्हारी खंडित एकाग्रता
ReplyDeleteऔर रुढियों का फायदा
मुझे ही तो मिलना है ..
विकल्पहीन मनुजों तुमाहरी दुनियां से ..
अब मेरे वजूद का मिटना नामुमकिन है !
'नामुमकिन' को 'मुमकिन' कर सकें ऐसा मन्त्र दीजिये न.
आपके शब्द हृदय को मथ रहें हैं.क्या करें गल्ती की है तो भुगतेंगें भी.
भ्रष्टाचार पर लिखी आपकी यह कविता बहुत सामयिक है....प्रभावित करती रचना...
ReplyDeleteकरीब १५ दिनों से अस्वस्थता के कारण ब्लॉगजगत से दूर हूँ
ReplyDeleteआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
बेहद सुन्दर रचना....
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