वे सहज हो बतियाते नहीं हैं
और न ही सहजता से चल पाते हैं
अजीबोगरीब विचार हैं उनके
सहजता से जैसे रह गए हों अछूते|
ऐसे दिमाग होते हैं खब्ती भी
करते हैं निर्देशों का धीमा पालन
मगर होती हैं इनकी निष्कलंक मुस्कान
आमंत्रित करती हो जैसे सिर्फ प्यार
और प्यार भरा आलिंगन |
एक निष्कपट सा बच्चा जैसे
इनके दिलों में धडकता ....
हमेशा खिलखिलाता और महकता..
अपनी दुनिया में औरों से परे
होते हैं ये बड़े मेधावी
और अतुल्य कौशल से भरे ये सारे गुण दिखते हैं
इनमें सहजता से ..
बिलकुल नहीं दिखते
विकारग्रस्त
संदेहपूर्ण और असामान्य से ..
सच्चाई तो यह है कि-
हम रोजाना दिखावा करते है
बहुत ही सहज और सामान्य
चतुर, चालाक अथाह अद्भुत दिखने का
मगर सब होते है उतने ही
असहज व असामान्य
असहज व असामान्य
बहुत कुछ परे उस स्थिति से
जिसे कहा जा सके
पूर्णतया सहज और सामान्य?मुझे लगता है के आज २१वी सदी में वे लोग जो मानसिक या शारीरिक रूप से सामान्य नहीं है वे ज्यादा सामान्य व सहज व्यवहार करते नज़र आते है |
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