वे सहज हो बतियाते नहीं हैं
और न ही सहजता से चल पाते हैं
अजीबोगरीब विचार हैं उनके
सहजता से जैसे रह गए हों अछूते|
ऐसे दिमाग होते हैं खब्ती भी
करते हैं निर्देशों का धीमा पालन
मगर होती हैं इनकी निष्कलंक मुस्कान
आमंत्रित करती हो जैसे सिर्फ प्यार
और प्यार भरा आलिंगन |
एक निष्कपट सा बच्चा जैसे
इनके दिलों में धडकता ....
हमेशा खिलखिलाता और महकता..
अपनी दुनिया में औरों से परे
होते हैं ये बड़े मेधावी
और अतुल्य कौशल से भरे ये सारे गुण दिखते हैं
इनमें सहजता से ..
बिलकुल नहीं दिखते
विकारग्रस्त
संदेहपूर्ण और असामान्य से ..
सच्चाई तो यह है कि-
हम रोजाना दिखावा करते है
बहुत ही सहज और सामान्य
चतुर, चालाक अथाह अद्भुत दिखने का
मगर सब होते है उतने ही
असहज व असामान्य
असहज व असामान्य
बहुत कुछ परे उस स्थिति से
जिसे कहा जा सके
पूर्णतया सहज और सामान्य?मुझे लगता है के आज २१वी सदी में वे लोग जो मानसिक या शारीरिक रूप से सामान्य नहीं है वे ज्यादा सामान्य व सहज व्यवहार करते नज़र आते है |
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कम से कम वो दिखावा तो नहीं करते ... जो हैं उसे ही दिखा देते हैं हूबहू ... संवेदनशील रचना है ...
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील और दिलको छू लेने वाली अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteसादर
सुंदर और सराहनीय कविता बधाई और शुभकामनायें ज्योति |
ReplyDeletesach me ham samanya log jayda mansik rup se vikrit najar aate hain, iss duniya me..!!
ReplyDeletebahut bahut badhai iss pyare rachna ke liye...
kabhi hamare blog pe aayen......
ज्योति जी,यूँ ही अपने निर्मल ज्ञान के प्रकाश से रोशन करती रहिएगा
ReplyDeleteहम सब के हृदय.
अनुपम संवेदनशील प्रस्तुति के लिए बधाई.
मनुष्य के व्यवहार के द्वैध और द्वंद्व को अच्छा उकेरा है आपने
ReplyDeleteHow does a newborn get to 16 pounds?
ReplyDeleteसच्चाई को बयाँ करती हुई रचना आभार
ReplyDeleteसंवेदनशील प्रस्तुति ,बधाई
ReplyDeleteअद्भुत विचार,
ReplyDeleteआभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
सहमत हूँ आपके विचारों से.
ReplyDeleteनितान्त अलग भावभूमि पर सुन्दर कविता के लिए बधाई...
ReplyDeleteमगर सब होते है उतने ही
ReplyDeleteअसहज व असामान्य
बहुत कुछ परे उस स्थिति से
जिसे कहा जा सके
पूर्णतया सहज और सामान्य?
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
एक असामान्य से विषय पर आपने असाधरण कविता लिखी है। बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteमगर होती हैं इनकी निष्कलंक मुस्कान
ReplyDeleteआमंत्रित करती हो जैसे सिर्फ प्यार
और प्यार भरा आलिंगन ...
Very touching creation !
.
Bhaut khoob dear
ReplyDeleteसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
सुंदर और सराहनीय कविता
ReplyDeleteज्योति मिश्र जी बहुत ही सुन्दर परिभाषित किया इस व्यक्तित्व को सहज और असहज ...
ReplyDeleteअजीबोगरीब विचार हैं उनके
सहजता से जैसे रह गए हों अछूते|
ऐसे दिमाग होते हैं खब्ती भी
करते हैं निर्देशों का धीमा पालन
मगर होती हैं इनकी निष्कलंक मुस्कान
आमंत्रित करती हो जैसे सिर्फ प्यार
और प्यार भरा आलिंगन |
खूबसूरत रचना -बधाई
शुक्ल भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
Jyoti,
ReplyDeleteANUVAAD MEIN KOYI BHI TRUTI NAHIN HAI.
Take care
जिस संवेदनशीलता से आपने सब अनुभूत किया और जिस कुशलता से उदगार को अभिव्यक्ति दी है...सर झुक गया आपके और आपकी इस रचना के सम्मुख...
ReplyDeleteसामान्य और असामान्य का अंतर बहुत सही समझाया आपने...
nice post dear
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील और दिलको छू लेने वाली अभिव्यक्ति|
ReplyDeleteसंवेदनाओं को छूने में सफ़ल अभिव्यक्ति ...... शुभकामनायें !
ReplyDeleteबहुत ही सच बात कहदी है रचना में , सहज और सामान्य ही नहीं सभ्य होने का भी दिखावा करते है। अच्छी कविता है
ReplyDeleteबिल्कुल ही नये दृष्टिकोण से दो चित्र सामने रखे हैं.ऐसी रचनाधर्मिता के लिये बधाई.
ReplyDeleteमगर सब होते है उतने ही
ReplyDeleteअसहज व असामान्य
बहुत कुछ परे उस स्थिति से
जिसे कहा जा सके
पूर्णतया सहज और सामान्य?
दार्शनिक अंदाज.
बहुत अच्छी रचना. बधाई स्वीकारें
हम से जयादा सामान्य और सहज वे होते हैं जिन्हे हम असामान्य कहते हैं । सुंदर संवेदना से भरपूर रचना ।
ReplyDeleteआपका दार्शनिक अंदाज काबिले तारीफ है...यही कहा जा सकता है..हम भी अगर बच्चे होते..तो शायद इतने विकार भी न होते।
ReplyDeleteमगर सब होते है उतने ही
ReplyDeleteअसहज व असामान्य
बहुत कुछ परे उस स्थिति से
जिसे कहा जा सके
पूर्णतया सहज और सामान्य?
Bahut hi acchhi prastuti Jyoti mishra Ji.. Pahli baar padha.. blog se baahar aane mein waqt lagaa.. Badhaai..
हरियाली तीज के शुभ अवसर पर आप सभी को बहुत बहुत शुभकामनायें ..सुगना फाऊंडेशन मेघलासिया जोधपुर
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