Monday, November 21, 2011

आओ खेलें राजनीति

राजनीति ....आप सोच रहे होंगें या तो मैं पागल हो चुकी हूँ या इन दिनों पढ़ाई ज्यादा कर रही हूँ जिसके कारण मेरे मन में राजनीति खेलने जैसे मूर्खता भरे विचार उठ रहे हैं | विश्वास कीजिये ये सब में सोच समझ कर लिख रही हूँ | सच तो यह है की हम सब राजनीति करते हैं और हम में से कुछ तो उच्च कोटि के राजनीतिज्ञ बनने की क्षमता रखते है | चलिए इसके पहले कि आप पोस्ट पढना बंद कर दें राजनीति की कुछ बात हो जाय|

क्या है राजनीति?

एक अवधारणा के रूप में राजनीति के कई रूप और अर्थ हैं ..लोगों के अपने अपने विचार हैं कि राजनीति आखिर है किस शगल का नाम ? कुछ तो बस यही मान लेते हैं रो राजनीतिज्ञ करते धरते हैं वही राजनीति है |

महात्मा गाँधी ने कहा है की कोई भी इंसान राजनीति से नहीं बच सकता | यह एक सांप की जकड की तरह है जिससे हम बच नहीं सकते सिर्फ लड़ सकते है |
 न जाने क्यों लोग राजनीति को हमेशा गलत नज़र से देखते है | 
अक्सर आपने लोगों को कहते हुए सुना होगा - " भैया हम नहीं करते राजनीति, हम तो दूर ही अच्छे"  लेकिन सच तो यह है की रोज़ मर्रा की ज़िन्दगी में आम इन्सान से ज्यादा राजनीति कोई और नहीं करता, तो फिर इस बात को मानने में दिक्कत व शर्म  कैसी ? चलो खेलें राजनीति |

क्या हम अभ्यस्त नहीं
तोड़ने मरोड़ने के 
अपनी आईडिया और विचारों
को  फ़ैलाने व थोपने के  ? ....
क्या हम जुड़ना नहीं चाहते
केवल खुद के आनंद से ,
बडप्पन और दूसरों पर प्रभुता जमाने
की नीयत से ?

रहते हैं हम खोये अपने ही निजी स्वार्थों में
लगती हैं अच्छी अपने ही मतलब की बातें
हमारे खुद के अपने अजेंडा हैं ,
अपने टेम्पलेट और फार्मूले |

क्या गोलबंदी कर , हम संघ 
व दुरभि संधियाँ नहीं बनाते ?
अपने गुटों में बटें, गहरे डूबे
संवेदनाओं से शून्य जड़वत
अपने ही मायाजाल में
उलझे नहीं रहते |
बिलकुल राजनितिक दलों की तरह
हम भी कूटनीति नहीं करते ??

तो चलिए खेलें हम राजनीति का खेल
वैसा ही तो जैस पहले से खेलते आये हैं |
कैसे कर सकते हैं भला इससे इनकार
क्योकि यही तो सच है !
अब मान भी जाओ यार !!!

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15 comments:

  1. मान गए भई मान गए ।
    इन्सान पैदा होने से लेकर अंत तक राजनीति ही करता रहता है ।

    पढाई के लिए शुभकामनायें ।

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  2. सुप्रभाव हो या कुप्रभाव, बच नहीं सकते हैं।

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  3. क्योंकि यही तो सच है !
    अब मान भी जाओ यार !!!

    डॉ दराल ने माना , हमने भी यह माना
    'ज्योति'की ज्योत में बखूब यह पहिचाना
    कैसे कह सकते हैं कि हम खेलते नही राजनीति
    अच्छी हो या बुरी करते हैं हम सब इससे प्रीति.

    पंचतंत्र के 'मित्रभेद' नामक तंत्र में राजनीति के
    लिए लिखा गया है:-

    "सत्यानृता चपरूषा प्रियवादिना च
    हिंस्रा दयालुरपि चार्थ परा वदान्या
    भूरिव्यया प्रचुर वित्त समागमा च
    वेश्यान्ग्नेव नृपनीतिरनेकरूपा"

    सत्य,असत्य ,कठोर,प्रियवादिनी,हिंस्र,दयालु
    स्वार्थमयी ,पुरस्कार-मयी,अधिक व्यय और
    धन लाभ करानेवाली राजनीति वेश्या के समान
    अनेक रूप वाली होती है.

    उत्कृष्ट पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाई ज्योति.
    सुन्दर अनुवाद करवाने में आपके अँकल का भी हार्दिक आभार.

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  4. सर्वव्यापी राजनीति पर एक गहरा कटाक्ष !

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  5. ek hi bhaav do bhashaon mein padh bahut achcha laga...
    kya baat hai

    Bahut khub...keep going

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  6. प्रभावशाली अभिवयक्ति.....

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  7. बहुत सही कहा आपने...अपने अपने स्थान पर, अपने अपने सामर्थ्यानुसार हर कोई राजनीति में रत है...

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  8. बिलकुल सही कहा

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  9. ये देखकर बहुत अच्छा लगा की आपने हिंदी में भी ब्लॉग बनाया है और इतनी खूबसूरत पोस्ट यहाँ दाल राखी हैं तीखे व्यंगो से भरपूर ये पोस्ट बहुत पसंद आई मुझे........आज ही फॉलो कर रहा हूँ........फुर्सत में आप भी हमारे ब्लॉग पर आये |

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  10. सुन्दर सत्य व सामयिक अभिव्यक्ति....आजकल तो प्रत्येक टीवी सीरियल में भी घर घर की स्त्रियां-बहू, बेटी, मां, बहन सभी राजनीति-कूटनीति करती दिखाई देरही हैं....बेचारे पुरुष.....

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  11. राजनीति बचना मुश्किल है पर सावधानी जरुरी है

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  12. Jyoti,

    Good translation. I agree with Sunil Kumar.

    Take care

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  13. There is clearly a bunch to realize about this. I consider you made certain nice points in features also.
    From everything is canvas

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  14. Very true! Congrats on writing such a meaningful post!

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  15. "rajneeti" true .... in modern senerio. yeah jyoti ji we also face politics in organization too on the name of organizational politics. I agree no one can save herself/himself from this dirty politics... i liked.

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