स्वतंत्रता यानि सब बंधनों से मुक्ति...
हर तरफ उन्मुक्त हो विचरना
और सिंह की तरह दहाड़ना..
पक्षी की तरह गगन में
निर्बाध उड़ते रहना....
इक खुशहाल परिवेश में
मदमस्त हो चलना फिरना
और कीड़ा कौतुक करते जाना ...
हर कोई गढ़ लेता है
स्वतंत्रता की दार्शनिकता भरी
अपनी अपनी परिभाषा
अपने लिहाज से मनमांगी,
मनमाफिक स्वतंत्रता के अर्थ ....
मगर हम तो रह गए हैं
बस एक कैदी ,एक गुलाम
आत्मघोषित स्वतंत्रता के ...
अपनी अंतहीन इच्छाओं के ...
जो पल प्रतिपल जनमती हैं
हमारे दिमागों में और
बनाती रहती हैं हमें
आत्मकेंद्रित, अमानवीय चाहों -
सुख सुविधाओं का गुलाम ...
हम भूलते जानते हैं जन गण मन के
दुःख दर्द और दारुण यातनाओं को
बस हो रहते केवल मशगूल
स्वार्थभरी चाहनाओं में ....
बस दूसरों के सामने दिखावों के
हम हो जाते हैं वशीभूत ..
प्रदर्शन और बनावटीपन के नित नए
प्रतिमानों ,पद और प्रतिष्ठा के दिखावे ...
तब भी दावे से कहते हैं हम हैं स्वतंत्र,
बंधनों और मजबूरियों से मुक्त..
हमारी रक्त धमनियां में है आवेग
झूठे मद और अहंकार का
दूसरों की खुशियाँ तनिक भी
नहीं भाती हमें ....
भले माथे पर पड़ता हो बल और
दुत्कारती हो हमारी नैतिकता
नए चलन और फैशन
अपने छुपे तरीकों से
बिगाड़ते हमारी अस्मिता
नित प्रदूषित कर रहे
हमारी अभिव्यक्ति और दृष्टि को
संदूषित करते हमारे उत्सवों-
राज पथ के परेडों को..
फिर भी चहुँ ओर विराजती
गुलामी पर होते रहते हैं
हम हमेशा गर्वित ....
हम लालच से भी कहाँ मुक्त हो पाए?
अथाह संपत्ति, धन लोलुपता को
लपलपाती हमारी जीभें,दुलराती दुमें
झूठें यश वैभव के प्रदर्शन को
बेताब हमारी नस्लें..
न कोई पश्चाताप न ही आत्म मंथन
जाहिर है ,हम हैं
सर्वथा स्वतंत्र और मुक्त कैदीजन!
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Independent, Free but SLAVES
http://jyotimi.blogspot.com/2011/08/independent-free-but-slaves.html
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बेहतरीन!
ReplyDeleteसादर
सच्चाई से रुबुरु करती हुई रचना आभार .......
ReplyDeletevery nice dear...
ReplyDeletewww.pksharma1.blogspot.com
ek baar aao
Hello there!
ReplyDeleteI'm very happy that you've begun writing in Hindi also. Now... what I wonder is whether you've translated this from 'it's' English version or it is just as spontaneous as it's sister post in your English blog. Anyways, I like your efforts and see that you are fully capable of translating your emotions and words in more than one medium, with great skill and ease.
सुंदर कविता ज्योति जी बधाई और शुभकामनाएं
ReplyDeleteअपनी बनायी दीवारों के कैदी।
ReplyDeleteमौलिक विचारों की सशक्त अभिव्यक्ति ...याद रहेगी यह कविता...
ReplyDelete♥ sarthak prastuti♥ badhai
ReplyDeleteसमाज को आइना दिखाती प्रस्तुति.
ReplyDeleteबधाई स्वीकार करें
ReplyDeleteबहुत उम्दा अभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteहमारी रक्त धमनियां में है आवेग
ReplyDeleteझूठे मद और अहंकार का
दूसरों की खुशियाँ तनिक भी
नहीं भाती हमें ....
भले माथे पर पड़ता हो बल और
दुत्कारती हो हमारी नैतिकता
bahut hi utkrasht shabdavali ka prayag .......thanks jyotiji.
kavita lambi leking khubsurat hai....bandan mukt hona aasan nahi..hone me bhi kai bandan...silsila jaari rahta ahi...
ReplyDeleteवाकई स्वतंत्रता को समग्र रूप से नहीं अपनाया है हमने.
ReplyDeleteकुछ गहरे प्रश्न खड़े करती है आपकी रचना ... स्वतंत्रता का मतलब क्या है ... शायद स्वतंत्र भारत अभी भी खोज रहा है ...
ReplyDeletesarthak vichar satik shabd//
ReplyDeleteबहुत खूब ! हिंदी में भी आप बहुत अच्छा लिखती हैं. शुभकामनाएं !
ReplyDeleteतुम्हारा सच में जवाब नहीं मैं तुम्हें और तुम्हारी लेखनी को सलाम करती हूँ इतनी छोटी सी उम्र में इतना सुन्दर वाह क्या लिखा है हर शब्द सच्चाई बयाँ करता हुआ |बहुत - बहुत शुभकामनायें |
ReplyDeleteकमाल की गहन अभिव्यक्ति है,ज्योति जी आपकी.
ReplyDeleteआप उम्र से छोटी जरूर हैं और मेरी बिटिया समान हैं,
परन्तु आपके विचारों की गहराई और समझ की ऊँचाई
मुझे मजबूर कर रहें है कि मैं आपको 'जी' कहकर ही पुकारूँ.
मुझे आप पर गर्व है.
आपके सुन्दर विचार मेरी नई पोस्ट पर भी अपेक्षित है.
नज़रिया बदलते ही परिभाषायें बदल जाती हैं, सुन्दर रचना!
ReplyDeleteस्वतंत्रता यानि सब बंधनों से मुक्ति...
ReplyDeleteमदमस्त हो चलना फिरना
और कीड़ा कौतुक करते जाना ...
मगर हम तो रह गए हैं
बस एक कैदी ,एक गुलाम
आत्मघोषित स्वतंत्रता के ...
हमारी रक्त धमनियां में है आवेग
झूठे मद और अहंकार का
झूठें यश वैभव के प्रदर्शन को
बेताब हमारी नस्लें..
न कोई पश्चाताप न ही आत्म मंथन
जाहिर है ,हम हैं
सर्वथा स्वतंत्र और मुक्त कैदीजन!
Bahut acchhi rachna.. Badhai..