Saturday, October 22, 2011

बदनसीब कहानियां


आधुनिक दुनियाँ ....विज्ञान और प्रौद्योगिकी का युग ,जगह जगह खुलते शापिंग माल ,गगनचुम्बी इमारतें, अंतर्जाल का फैलता विस्तार और सोशल नेटवर्क ..दूसरे ग्रहों ,चंद्रमाओं तक जा पहुँचाने के हमारे अभियान, ऊर्जा खोजों की नयी झिलमिलाहटें....सब कितना भव्य लगता है..हमें गर्व होता है कि हम कितनी तेजी से उन्नति कर रहे हैं ..ऐसे और भी सारे दृश्य जो विज्ञान फंतासी फिल्मों और उपन्यासों में पढ़ते हैं एक दिन हकीकत में बदल जायेगें..कौन जाने हम कभी अपनी छुट्टियां मंगल पर जा बितायें! 
लेकिन तनिक रुकिए !!
एक हकीकत और भी है ! एक और दुनियाँ और भी वजूद में है जो एक दूसरी हकीकत बयान कर रही है जहाँ  ४० फीसदी से अधिक लोग अमानवीय बसाहटों में गुजर बसर कर रहे हैं ..कुछ को कुदरत ने मारा है मगर बहुतेरे हमारे जातीय भेद भाव और उपेक्षा के शिकार हैं ....
एक चुभता सत्य! 
ऐसे संसार की एक झलक पाने को आपको किसी अफ्रीकी देश तक नहीं जाना है .. अपने सुख सुविधाभरी जिन्दगी से इतर तनिक गर्दन घुमा कर देखिये तो |
उन अभाव ग्रस्त जिंदगियों -चलती फिरती लाशों को देखिये मगर कहाँ? हम इतने असंवेदी और बाहरी जगत की सच्चाईयों के प्रति प्रतिरोधी हो चुके हैं कि हमें यह नग्न सत्य दिखता नहीं और अगर दिखता भी है तो एक खूबसूरत शहर के बदनुमा दाग मान मुंह फेर लेते हैं | 

हम खुद अपने में ही इतने मशगूल हैं कि इन अभावग्रस्तों की कुशल क्षेम कोई भी सहायता,इमदाद की फ़िक्र ही नहीं होती हमें .. ..

एक बदनसीब कहानी ...
यह कहानी है एक उस आदमी की जिसने पिछली सुनामी में अपना घर परिवार गँवा दिया था ....
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पूरी तरह बर्बाद और विनष्ट
प्रलयंकारी लहरों में
बह गए उसके सपने
घूमता बेसहारा इधर-उधर
कुंठित भिखारी सदृश |
सुनामी ने किया था
जिसे परिवार से विलग..
जीवित तो बच गया  वो
परन्तु खो चुका था जीवन |

नसों का ताना बना गया था गड़बड़ा
लाखों -करोड़ों की भांति
वो भी बेसुध सा, खड़ा हडबडा
रात- दिन, हफ्ते -महीने
छलते उसे हर दिन 
धनुस्तम्भ की भांति
जिए वो हर पल, गिन-गिन
जाने न क्या है कब ?? कौन से दिन ?
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एक और बदनसीब कहानी :
जो इक्कीसवी सदी के एक सभ्य,अच्छी शिक्षा प्राप्त और धनाढ्य इन्सान की है ,एक सब तरह से संपन्न जीवन यापन कर रहे सुखी मनुष्य की
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२१वीं सदी में
में, मेरी, और स्वयं की
मुझे सिर्फ होती है परवाह
बाकी और लोगों की
न मुझे फ़िक्र, न चाह |
वे सभी तो भगवान के बन्दे हैं
हम निरीह, व्यथित
भला कर ही क्या सकते हैं...
कहाँ है मेरे पास समय और पैसा
में नहीं कर सकता कुछ ऐसा- वैसा |
वैसे भी हम संतप्त और खुद से बेदार
दूसरों की फ़िक्र करना
निहायती रद्दी और बेकार |

देखभाल ,सहायता ,दया और दान
कहाँ हमारी सूची में,
हम तो भैया व्यस्त पड़े है
अपनी खुद की ड्यूटी में |
मेरी दुनिया है विकास और प्रगति की
विलासिता और मौज मस्ती की
मुझे छोड़, बाकी सब के पास जाइये
मेरे अलावा, दूसरे लोगों पर गौर फरमाईये |
कल्याण, परोपकारिता जैसे कपडे
मुझे फिट नहीं होते , जनाब
आजकल इन सब चीजों के बारे
में बात नहीं किया करते |
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  अब आप बताईये कौन सी कहानी ज्यादा बदनसीब है ??
त्रासदी तो दोनों में हैं .............लेकिन कौन सी ज्यादा गंभीर और खतरनाक है ??

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15 comments:

  1. ज्योति,गजब के विचारोत्तेजक लेख प्रस्तुत करती जा रहीं हैं आप.
    आप सैदेव सद्बुद्धि से संपन्न हो ग्यान का प्रकाश
    यूँ ही चहुँ ओर फैलाती रहें बस यही दुआ और कामना है.

    समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.

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  2. बहुत ही मार्मिक और आँखें खोल देने वाली प्रस्तुति ......
    यह हमें आत्म निरीक्षण को विवश करती है

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  3. पहले वाले के पास कोई चुनाव नहीं है इसलिए उसकी त्रासदी बड़ी है.

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  4. विचारनीय आलेख प्रस्तुत किया है आपने

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  5. gambheer aur khatarnaak doosree hai jo khud tak simit hai... dard jo pahle ka hai, uske liye maun aansu hi hain...

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  6. बदनसीब तो दोनों ही हैं, एक किस्मत का, तो एक बुद्धि का।

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  7. बदनसीबी के मायने और सन्दर्भ बदल गये हैं.
    परंतु दोनों में बदनसीबी समाज की ही है

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  8. अंदर तक झकझोर देती है आपकी यह कविता।

    सादर

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  9. अलग-अलग किस्म की बेचारगी की दास्ताने हैं।

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  10. मन को झकझोर दिया आपके इस सवाल ने ...

    आपको धनतेरस और दीपावली की हार्दिक दिल से शुभकामनाएं
    MADHUR VAANI
    MITRA-MADHUR
    BINDAAS_BAATEN

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  11. काफी संवेदनशीलता से अपने आस-पास की पड़ताल की है आपने.

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  12. दोनों ही कहानी संवेदनशील है पहले वाली मेर विचार में ज्यादा बड़ी त्रासदी है

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  13. trasdayee kahaniyan....aapke samvedansheel man ko bakhoobi prastut karte hue sochane par majboor karti hai...

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  14. स्नेही ज्योति,

    आप में यह विशेषता है कि आप असंवेदनशील व्यक्तियों को जगा सकती हो | आपकी इस विशेषता का एक अच्छे मनुष्य, परिवार, समाज, देश, प्रकृति आदि के लिए बहुत ही श्रेष्ट उपयोग हो सकता है | आपकी इस प्यारी खूबी के लिए आपकी योग्यता, आपके परिवेश को सराहता हूँ |

    *

    जिस जगह जो हमारे वश में नहीं होता है उसके बारे में क्या करे और क्या कहें ! आपके प्रस्तुत विषय हो सकता है कि किसी के कुछ प्रभाव नहीं डालते हो किन्तु किसी व्यक्ति के इतनी संवेदनशीलता हो कि उस व्यक्ति को आपकी प्रस्तुतियां कष्ट पहुंचाती हो ! सकारात्मक दृष्टि से कृपया उनका भी ध्यान रखें |

    आपका शुभेच्छु - यशवंतसिंह

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  15. pahle wala to badnaseeb hai hi lekin dusare wale apni badnasibi khud tay karte hai... yah bhi kisi trasadi se kam nahi...
    ..man ko andolit kar bahut kuch sochne par majboor karti saarthak prastuti hetu aabhar!

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