Sunday, March 18, 2012

Temporarily Out of Action !!!!

चयनिका 
Temporarily Out of Action !!!!
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Sunday, December 25, 2011

Merry Christmas n Happy New Year


आप सभी को Christmas व नव वर्ष की हार्दिक हार्दिक शुभकामनाएं |
खूब मज़े करें, और खूब पार्टी करें !!
 PS: I have my exams in the 1st week of January.... So m partying n celebrating with books... Won't be blogging or reading your posts for few days.... but will b back soon :) 
Till then keep enjoying n keep writing !!!
~ Jyoti Mishra 



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Tuesday, December 20, 2011

दोष और विकार


 आज की इस आप धापी  भरे जीवन में और हर चीज़ में सबसे आगे रहने की होड़ में हम सब को  परफेक्शन की लत लग चुकी है | गलतियाँ व छोटी छोटी त्रुटियाँ हमें बर्दाश्त नहीं होती | 
एसा क्यों ??  हम ऐसे क्यों बनते जा रहे है ? क्यों हम लोगों की छोटी गलतियों को नज़र अंदाज नहीं कर पाते? आप अपने घर में या आफ़िस में लोगों या कर्मचारियों द्वारा की गयी ज़रा सी भूल का ऐसा तमाशा बनाते है की जैसे कुछ अति भयानक हो गया हो || 
हमारी सहन करने, और माफ़ करने की क्षमता को भगवान जाने क्या हो गया है ?

जिस प्रकार हर लिखा शब्द 
कहानी या गाना नहीं होता 
ठीक उसी प्रकार, 
कुछ काम का  न आना 
कोई पाप, या खोट 
का ठिकाना नहीं होता |

क्यों पड़े हम इस 
सर्वदा-पूर्णता के कुचक्र में |
विशुध्ता, के दुष्चक्र में |
क्यों नहीं  झेल पाते 
हम ज़रा सी गलती को   ?
क्या हो गया हमारी, 
मानवता की  भावना को ?

थोडा सा दोष कुछ 
बुरा नहीं  होता |
एसा इन्सान कोई हैवान नहीं होता |
सब में कोई न कोई दोष |
फिर क्यों ये बवाल 
और कैसा ये रोष ??

चलो उठ जाये ऊपर दोषारोपण और 
दोष की भावनाओं से |
क्यों न थोडा मज़ा ले, 
दोषयुक्त जीवन का |
सुधार नाम की चीज़ भी होती है 
इस दुनिया में, 
कोई भी पूर्ण रूप से परिपूर्ण नहीं इस जहाँ में |

तो अगली बार अगर आपको कोई गलती करता दिखे, तो उस पर पुरे जहाँ का गुस्सा उतरने की बजाय उसे या तो दूसरा मौका दे, या दूसरा काम ही दे दे | क्योंकि हर व्यक्ति, हर समय, हर काम में अच्छा हो, संभव नहीं |
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Imperfection
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Friday, December 16, 2011

मैं और संगीत


लय, ताल की ईश्वरीय दुनियाँ में रमता है मेरा मन 
संगीत से बढ़कर दुनियाँ में कुछ और नहीं. धरती पर संगीत का कोई विकल्प हो ही नहीं सकता..... शायद ही कोई हो जिसे संगीत पसंद न हो .......  निजी रुचियों और विधाओं में फर्क हो सकता है मगर संगीत से कोई घृणा नहीं कर सकता . यह सिर्फ आनंद और मज़े के लिए ही नहीं मगर एक सुखद पलायन भी है रोजाना की विडम्बना भरी जिन्दगी से जिसमें हम एक प्रकार से कैद हो चुके है..... आप भले ही कैसे भी परिवेश और मूड में क्यों न हों सुमधुर संगीत सब कुछ आसान कर देता है ..... इसका असर जादुई है और इसमें सभी जख्मों को भर देने की अद्भुत क्षमता है |
मुझ जैसे संगीत प्रेमी के लिए तो इसका नियमित रोजाना डोज जैसे जीवन की निरंतरता के लिए अपरिहार्य है | मैं बिना इसके रह पाने की कल्पना तक नहीं कर सकती | 

संगीत, लय, ताल में 
गुम हो जाती मैं |
जैसे, मनपसंद रास्ते पर , 
यूँ ही घूमा करूँ मैं |

दुनिया की तमाम हलचलों से,
मतलबी काम, भेड़ चाल से |
बचने को तरसती मैं,
संगीत में बेसुध हो,
ये सब भूल जाती मैं |

मंत्रमुग्ध, नशा सा छाया, 
नाच, गाने का मन हो आया |
अपने ही अंतस से जैसे जा मिली मैं, 
बेखबर हो बाहरी दुनिया से,
बस, आकर छिप जाती मैं |

मेरा मन गा उठे हर कभी, 
जब हूँ मैं कोई दिक्कत में,
हाँ दोस्त, बस तभी |
सारे गम भूल कर खो जाती मैं, 
अपनी ही दुनिया में रम जाती मैं |
बस पल भर में ही,
चुस्त दुरुस्त हो जाती मैं |
सब छोड़कर, जब गुनगुनाती मैं |
प्रश्न: आपके जीवन में "संगीत" के क्या मायने है ??
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All I need is Rhythm Divine 
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Friday, December 9, 2011

भीड़ में वो चेहरा


जैसे ही आप अपने घर क बहार कदम रखते है, आप बन जाते है एक भीड़ का हिस्सा | जहाँ अनगिनत अनजान लोग एक साथ घूमते है, बसों में , ट्रेन में,  रोड पर...... एक दूसरे के जीवन को बिना छुए न जाने रोज़ कितने ही लोगों से आपका आमना सामना होता है  |
जाने कितने ही ऐसे अनजाने चेहरों से आप मिलते है.... पर आज कल किसी के पास अपने व अपने जानने वालों के अलावा किसी और के बारे न तो सोचने का समय है और न ही इच्छा | 
लेकिन कभी-कभी भीड़ में कुछ ऐसे चेहरों  से सामना होता  है जिसे  भूल पाना आसन नहीं होता |


वो चेहरा, भीड़ में 
सुबकता, अकेला एक कोने में |
कुछ तो गलत हुआ था, उसके साथ |
वो आंसू पोंछते, उसके आंसू भरे हाथ | 
बहुत अजीब था, वो सब देखना 
उससे भी ज्यादा अजीब था, 
उसका यूँ इस तरह, इतना अकेला होना |

उस चेहरे ने मुझे सोचने पर मजबूर किया 
उसका ऐसा बुरा हाल, आखिर ऐसे कैसे हुआ |
वो इस भीड़ में, यूँ अकेला खड़ा, 
जैसे किसी कोने में हो
एक अनचाहा पत्थर पड़ा |


उस चेहरे ने कह डाली, 
उसके पूरे जीवन की कहानी |
जैसे हो एक तस्वीर, 
अनंत कष्ट और परेशानी  |
कौन जाने ??
अभी और क्या-क्या सहना हो,
इन आंसुओं को कब तक ओर बहना हो |

अगले ही पल, में चल पड़ी 
अपनी मंजिल की ओर |
वही रोज़ का काम, 
रोज़ का शोर |
नियमित कामों की दैनिक खुराक, 
मेरी प्रतिष्ठा बनी रहे, 
यही कोशिश, यही फ़िराक |

आज भी, जब में नज़र घुमाती हूं 
अपने चारों ओर, 
ऐसे कितने ही चेहरे पाती हूँ |
अलग कहानी, अलग आधार,
पर वो लगे मुझे, जैसे वो हों सिर्फ
एक ही चीज़ के अनेक प्रकार |
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Face in the Crowd 
http://jyotimi.blogspot.com/2011/12/face-in-crowd.html
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Monday, November 28, 2011

विचारों का मायाजाल



हम सबकी अपनी राय व भिन्न विचार होते है | दुनिया में ऐसी कोई भी चीज़ नहीं जिसके बारे में हमारी कुछ राय न हों | फिर चाहे हमें उसके बारे में कुछ पता हो या नहीं, लेकिन उस विषय पर हमारी खुद की ख़ास राय  अवश्य तैयार रहती है |

चौंकिए मत यह सत्य है | चलिए में कुछ विषय चुनती हूँ और आप देखिये कैसे तुरंत आपके मष्तिष्क में विचारों की गाडी दौड़ेगी ........... जलवायु, कानून, नीतियां, सरकार, समाज, शिक्षा, स्वास्थ्य, अपराध, शिष्टाचार, धर्म, जाति.... देखा हर चीज़ के बारे में आपके पास कुछ न कुछ कहने को ज़रूर होगा | 
  
हमारी अपनी राय, विचार व अभिव्यक्तियाँ हमारे जीवन में कितना महत्व रखती है, इसका अंदाजा तो इसी बात से लगाया जा सकता है की हमारे संविधान में हमें "अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता" मौलिक अधिकार की तरह प्राप्त है |न्याय-पालिका, जो की हमारी सरकार का तीसरा स्तम्भ है, सिवाय कानून की व्याख्या ( वकीलों व न्यायाधीशों की राय) ही तो है | 

तात्पर्य यह है के हम सभी लोग भिन्न विचारों व मतों के एकाधिक बादलों अर्थात विचारों के मायाजाल में घिरे हुए हैं | ये हमारे चारों तरफ है, और में यह सोचने पर मजबूर हूँ कि किस प्रकार ये "विचार", "राय ", "सुझाव" व भिन्न "मत" हमारे मन-मष्तिष्क को प्रभावित करते है, और तो और किस हद तक हमारे कार्यों व गतिविधियों को बदलने की ताकत करते है | 
एक और बात यहाँ सामने लाना चाहूंगी की किस तरह कभी कभी हम दूसरों के विचारों व सुझावों के प्रभाव में आकर अपनी एक प्रकार की पक्षपाती राय बना लेते है, और 
किस प्रकार बिना सोचे- समझे दूसरों पर अपनी राय थोपने का भी प्रयास करते है |

क्या  "राय", "विचार" जैसी चीज़ें 
महत्व रखती है ??
बिलकुल रखती है | 
तभी तो, कभी-कभी 
न चाहते हुए भी 
सुननी व सहनी पड़ती है |

ध्यान रहे 
ये है बड़ी ज़रूरी | 
लाये जीवन में नयापन व खुशहाली | 
जैसे होती  किसी बीमार के लिए
उसकी दवाई व गोली |

सम्पादकीय, पत्रिकाएँ
पुस्तकें व पत्रकार |
ये है चहुँ और, 
हर एक से है इसका सरोकार |
कोई नहीं सकता इसे नकार |

कुछ होती है हमारे समझ के परे
पर "होशियार" हम जो ठहरे |
मारे आदत के,
ये कभी नहीं मान सकते हम  |
की हमें नहीं आता ये,
ज्ञान हमें थोडा सा कम |

1 नंबर के विचारक है हम,
नहीं है किसी मशीन से कम |
बनाते है, संसाधित करते है,
भिन्न विचारों व सुझावों को |
करते है हम रोज़, करते रहेंगे हर दम | 

तो आप बताएं कैसी लगी आपको मेरी  " राय " और यह विचारों का मायाजाल  | 
आप  क्या सोचते है कि, किस प्रकार आपका जीवन इन भिन्न सुझावों व विचारों से प्रभावित होता है !!


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Monday, November 21, 2011

आओ खेलें राजनीति

राजनीति ....आप सोच रहे होंगें या तो मैं पागल हो चुकी हूँ या इन दिनों पढ़ाई ज्यादा कर रही हूँ जिसके कारण मेरे मन में राजनीति खेलने जैसे मूर्खता भरे विचार उठ रहे हैं | विश्वास कीजिये ये सब में सोच समझ कर लिख रही हूँ | सच तो यह है की हम सब राजनीति करते हैं और हम में से कुछ तो उच्च कोटि के राजनीतिज्ञ बनने की क्षमता रखते है | चलिए इसके पहले कि आप पोस्ट पढना बंद कर दें राजनीति की कुछ बात हो जाय|

क्या है राजनीति?

एक अवधारणा के रूप में राजनीति के कई रूप और अर्थ हैं ..लोगों के अपने अपने विचार हैं कि राजनीति आखिर है किस शगल का नाम ? कुछ तो बस यही मान लेते हैं रो राजनीतिज्ञ करते धरते हैं वही राजनीति है |

महात्मा गाँधी ने कहा है की कोई भी इंसान राजनीति से नहीं बच सकता | यह एक सांप की जकड की तरह है जिससे हम बच नहीं सकते सिर्फ लड़ सकते है |
 न जाने क्यों लोग राजनीति को हमेशा गलत नज़र से देखते है | 
अक्सर आपने लोगों को कहते हुए सुना होगा - " भैया हम नहीं करते राजनीति, हम तो दूर ही अच्छे"  लेकिन सच तो यह है की रोज़ मर्रा की ज़िन्दगी में आम इन्सान से ज्यादा राजनीति कोई और नहीं करता, तो फिर इस बात को मानने में दिक्कत व शर्म  कैसी ? चलो खेलें राजनीति |

क्या हम अभ्यस्त नहीं
तोड़ने मरोड़ने के 
अपनी आईडिया और विचारों
को  फ़ैलाने व थोपने के  ? ....
क्या हम जुड़ना नहीं चाहते
केवल खुद के आनंद से ,
बडप्पन और दूसरों पर प्रभुता जमाने
की नीयत से ?

रहते हैं हम खोये अपने ही निजी स्वार्थों में
लगती हैं अच्छी अपने ही मतलब की बातें
हमारे खुद के अपने अजेंडा हैं ,
अपने टेम्पलेट और फार्मूले |

क्या गोलबंदी कर , हम संघ 
व दुरभि संधियाँ नहीं बनाते ?
अपने गुटों में बटें, गहरे डूबे
संवेदनाओं से शून्य जड़वत
अपने ही मायाजाल में
उलझे नहीं रहते |
बिलकुल राजनितिक दलों की तरह
हम भी कूटनीति नहीं करते ??

तो चलिए खेलें हम राजनीति का खेल
वैसा ही तो जैस पहले से खेलते आये हैं |
कैसे कर सकते हैं भला इससे इनकार
क्योकि यही तो सच है !
अब मान भी जाओ यार !!!

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